शून्य रेखा (Zero Line)
भाग 1: आवाज़ जो नहीं सुनी गई
वर्ष 2031। भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध नाजुक संतुलन पर टिके थे—न खुली लड़ाई, न सच्चा मेल। कूटनीति की भाषा में इसे “तनाव में शांति” कहा जाता था। लेकिन यह शांति सिर्फ ज़मीनी सरहदों तक सीमित थी। डिजिटल दुनिया में एक अदृश्य युद्ध छिड़ा हुआ था, जहाँ न बंदूकें थीं, न सैनिक—सिर्फ कोड, वायरस और हैक।
लखनऊ की एक सरकारी साइबर यूनिट में काम करती थी अनया मिश्रा—२८ वर्षीय विश्लेषक, जिसे डेटा की लहरों में छिपे झूठ को पकड़ने की अद्भुत क्षमता थी। एक शाम जब वह जल मंत्रालय के सर्वर की मॉनिटरिंग कर रही थी, उसे कुछ असामान्य दिखा।
“सर, ये डेटा ट्रैफिक नॉर्मल नहीं है,” उसने टीम लीडर से कहा। “कोई हमारे जल भंडारण सिस्टम को रिमोटली मॉनिटर कर रहा है।”
उसी समय इस्लामाबाद में बैठा अमीर हुसैन, एक स्वतंत्र एथिकल हैकर, पाकिस्तानी अस्पतालों के सर्वर पर हो रहे अचानक बदलावों से परेशान था। बच्चों के टीकाकरण की रिकॉर्ड फाइलें गायब थीं, और उन पर विदेशी आईपी से लॉगिन हुआ था। अमीर को शक हुआ—कोई तीसरा पक्ष दोनों देशों की प्रणाली में सेंध लगा रहा है।
दोनों देशों के प्रशासन ने इसे एक-दूसरे का हमला मान लिया। मीडिया ने आग में घी डाला—“भारत पर पाकिस्तानी साइबर हमला” और “भारत ने अस्पतालों को बनाया निशाना।”
पर अनया और अमीर जानते थे—ये काम उनके देश के नहीं हो सकते। कोड की भाषा, एन्क्रिप्शन की शैली, और वायरस की डिज़ाइन… सब कुछ किसी और की छाप लिए हुए था।
शुरुआत हो चुकी थी।
एक ऐसा युद्ध, जो आँखों से नहीं, स्क्रीन के पीछे लड़ा जाना था।
और बीच में फंसी थी—जनता।
भाग 2: पर्दे के पीछे की काली स्क्रीन
अनया मिश्रा को जो संदेह हुआ था, वह अब धीरे-धीरे ठोस शक में बदल रहा था। उसने एक पुराने वायरस सिग्नेचर की जांच की, जो कई साल पहले इज़राइल के एक साइबर हथियार प्रोग्राम में देखा गया था। वही पैटर्न, वही संरचना, वही डिजिटल ‘फिंगरप्रिंट’।
“ये हमला पाकिस्तान का नहीं है,” उसने फाइल बंद करते हुए कहा। “किसी तीसरे देश ने इसे शुरू किया है… शायद इसलिए कि दोनों देश एक बार फिर आमने-सामने आ जाएं।”
वहीं दूसरी ओर, अमीर हुसैन ने पाकिस्तानी डार्कनेट से एक फाइल पकड़ी जिसमें कुछ संदिग्ध अमेरिकी टेक फर्म्स के नाम सामने आए। उन्हीं कंपनियों ने दोनों देशों को साइबर सुरक्षा समाधान बेचे थे।
“जो हमें सुरक्षा दे रहे हैं, वही हमें तोड़ भी रहे हैं?”
अमीर का मन उलझ गया।
इंटरनेट के एक पुराने ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म पर, दोनों का संपर्क हुआ।
अनया: “मैं भारत से हूं। मेरे पास ऐसे कोड हैं जो पाकिस्तान का नहीं लगते।”
अमीर: “मैं पाकिस्तान से हूं। हमारे सिस्टम पर हमला हुआ है, पर कोड बाहर का है।”
एक-दूसरे पर भरोसा करना आसान नहीं था। लेकिन दोनों समझते थे—अगर उन्होंने कुछ नहीं किया, तो एक और युद्ध बस headlines बन जाएगा।
उनका मिशन शुरू हुआ:
- सबूत इकट्ठा करना
- कनेक्शन ट्रेस करना
- सच्चाई को उजागर करना
पर उन्हें ये भी एहसास हो गया था—जो सच वे दुनिया को दिखाना चाहते हैं, वो शायद ही कोई देखना चाहे।
भाग 3: एक प्रश्न, बिना उत्तर के
अनया और अमीर अब अपने-अपने देशों के सिस्टम से नहीं, उस सोच से लड़ रहे थे जो हर प्रश्न को देशद्रोह बना देती है। उन्होंने अपनी खोज से जो पाया, वो चौंकाने वाला था।
एक वैश्विक कंपनी — “Cyrex Defense Systems” — दोनों देशों को साइबर सुरक्षा और हथियार दोनों बेच रही थी। उसी ने वर्चुअल वायरस भी डिजाइन किया, और उसी ने उसका एंटीवायरस।
उसका लाभ इस बात पर टिका था कि भारत और पाकिस्तान हमेशा दुश्मन बने रहें।
उन्होंने एक साझा रिपोर्ट तैयार की, जिसमें डिजिटल सिग्नेचर, भुगतान रसीदें, और नेटवर्क ट्रेसिंग लॉग्स थे।
उन्होंने इसे एक वैश्विक साइबर पीस कॉन्फ्रेंस में ऑनलाइन प्रस्तुत करने का निर्णय लिया।
लेकिन सरकारों को भनक लग गई।
अनया को दिल्ली एयरपोर्ट पर हिरासत में ले लिया गया।
अमीर को इस्लामाबाद के पास उसके घर से उठाया गया।
रिपोर्ट बाहर नहीं आ सकी—पर उसका एक हिस्सा डार्कवेब पर लीक हो गया।
वह हिस्सा बस एक लाइन में था:
“अगर दोनों देश तबाह हो रहे हैं, तो जीत किसकी हो रही है?”
आज भी सीमा पर गोलीबारी कम है, लेकिन डिजिटल हमले हर दिन हो रहे हैं।
लोगों के बैंक अकाउंट हैक हो रहे हैं। अस्पतालों के डेटा चुराए जा रहे हैं।
स्कूलों की ऑनलाइन पढ़ाई रुकती रहती है।
राजनेता भाषण दे रहे हैं, कंपनियाँ पैसे कमा रही हैं, और आम जनता…
बीच में पिस रही है।
अंतिम प्रश्न:
क्या तकनीक अब युद्ध का नया मैदान बन चुकी है, जहाँ सैनिक नहीं मरते, बल्कि आम लोग?
क्या हमें दुश्मनों से लड़ना चाहिए, या उस व्यवस्था से जो हमें दुश्मन बना देती है?
यह कहानी खत्म हो गई।
पर सवाल अब भी खुला है…
“क्या सच्चाई एक दिन सुनी जाएगी?”